जिंदगी
कुछ अनकही बाते बस अनकही रेह जाती है कहेेके कुछ नही होगा यह समझ जाती है खुदकी खुशी दुसरों की खुशी मे कंही खो जाती है दुःख की चिकार सेंक्डो अट्टहास मैं कंही डूब जाती है ना जाना है ना जानने की कोशिश की जाती है गम के मैदान मे खुश रहने की साझीश की जाती है अपेक्षाऐं तो सबकी पूरी हो जाती है खुदसे खुदकी आस बस आधी रह जाती है मंजिल के सफर मे मंजिल बदल जाती है सफर सुहाना था बस वह एक याद रह जाती है खुदसे खुलके रोनेका हर मौका भी छीन जाती है यह जिंदगी हे जो दूसरो के लिये जी जाती है